दीपावली का पर्व केवल दीपों की जगमगाहट और उल्लास का प्रतीक नहीं, बल्कि यह नए आरंभ, शुभ संकल्प और समृद्धि का संदेश भी देता है। इसी दिन एक विशेष पूजा की परंपरा होती है जिसे चोपड़ा पूजा कहा जाता है। यह पूजा विशेष रूप से व्यापारियों और नए कार्य की शुरुआत करने वालों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। वर्ष 2025 में यह पूजा 20 अक्टूबर (सोमवार) को की जाएगी। इस दिन नया लेखा-जोखा या बही-खाता आरंभ किया जाता है, जिसे आने वाले वर्ष में धन, सौभाग्य और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है।
क्या होती है चोपड़ा पूजा?
‘चोपड़ा’ शब्द का अर्थ होता है बही-खाता या लेखा-पुस्तक। प्राचीन काल से दीपावली के अवसर पर पुराने खातों का समापन कर नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत करने की परंपरा रही है। व्यापारी इस दिन अपनी नई बही, डायरी या फाइल की पूजा करते हैं। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की उपासना के बाद नई बही पर “श्री गणेशाय नमः” या “श्री लक्ष्मी नमः” लिखना अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से पूरे वर्ष धन, सफलता और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह पूजा केवल व्यापारियों तक सीमित नहीं है। जो लोग किसी नए काम, व्यवसाय या योजना की शुरुआत करना चाहते हैं, वे भी इस दिन लेखनी, डायरी या उपकरणों की पूजा करके शुभ आरंभ कर सकते हैं।
चोपड़ा पूजा का आध्यात्मिक महत्व
चोपड़ा पूजा सिर्फ एक आर्थिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संकल्प भी है। यह हमें प्रेरित करती है कि नया वर्ष ईमानदारी, पारदर्शिता और अच्छे कर्मों के साथ शुरू किया जाए। यह पूजा मां लक्ष्मी की कृपा से धन-संपन्नता के साथ-साथ भगवान गणेश के आशीर्वाद से विवेक और आत्मविश्वास प्रदान करती है। इस प्रकार, यह पूजा जीवन में संतुलन, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा का संदेश देती है।
चोपड़ा पूजा का शुभ मुहूर्त 2025
इस वर्ष दीपावली 20 अक्टूबर 2025 (सोमवार) को मनाई जाएगी और इसी दिन चोपड़ा पूजा का शुभ समय रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, प्रदोष काल इस पूजा के लिए सबसे उत्तम माना गया है, क्योंकि इसी समय लक्ष्मी पूजन और चोपड़ा पूजा का विशेष महत्व होता है।
प्रदोष काल: शाम 5:46 बजे से रात 8:18 बजे तक
लाभ और अमृत चौघड़िया: दोपहर 3:44 बजे से शाम 5:46 बजे तक
चर चौघड़िया: शाम 5:46 बजे से 7:21 बजे तक
दीपावली की चोपड़ा पूजा केवल धन की कामना नहीं, बल्कि नए वर्ष को शुभ विचारों, कर्म और ईमानदारी के साथ शुरू करने का संकल्प है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति के उस मूल विचार को दर्शाती है, जहां भक्ति, व्यवसाय और नैतिकता तीनों एक सूत्र में बंधे हैं।