हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है। यह रात धार्मिक आस्था, सेहत और सौभाग्य तीनों ही दृष्टियों से बेहद खास मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणें अमृत के समान प्रभाव देती हैं।
चांदनी और अमृत का संबंध
शास्त्रों के अनुसार साल की बारह पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा सबसे प्रभावशाली होती है। कहा जाता है कि इस रात चंद्रमा से अमृत बरसता है। यही कारण है कि लोग इस दिन विशेष पूजा करते हैं और रातभर जागरण रखते हैं।
खीर रखने की परंपरा का रहस्य
इस अवसर पर खीर बनाकर खुले आकाश के नीचे रखने की परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और जागरण करने वालों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। चांदनी में रखी खीर को अगली सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
विज्ञान भी मानता है असर
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो शरद ऋतु में आसमान साफ रहता है और प्रदूषण कम होता है। इस वजह से चंद्रमा की किरणें पूरी ऊर्जा के साथ धरती तक पहुंचती हैं। इनमें मौजूद यूवी और इंफ्रारेड किरणें शरीर को ठंडक देती हैं, तनाव कम करती हैं और मन को शांति प्रदान करती हैं। दूध और चावल पर चांदनी का असर पड़ने से यह और भी पौष्टिक और सुपाच्य हो जाता है।
कोजागरी व्रत और जागरण का महत्व
इस दिन महिलाएं विशेष रूप से कोजागरी व्रत रखती हैं। रातभर जागकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर की दरिद्रता दूर होती है और सुख-समृद्धि आती है।
सेहत से जुड़ा राज
आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात की चांदनी औषधीय गुणों से भरपूर होती है। यह मानसिक शांति देती है, अनिद्रा की समस्या को कम करती है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है। इसलिए शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा का अनमोल अवसर भी है।