Silk City पर संकट का जाल, ट्रंप टैरिफ और नेपाल हिंसा से 150 करोड़ का नुकसान, थमी करघों की खटखटाहट

भागलपुर की पहचान उसकी रेशमी साड़ियों और कपड़ों से होती है। यही वजह है कि इसे सिल्क नगरी कहा जाता है। लेकिन इन दिनों इस नगरी की चमक फीकी पड़ रही है। जिन करघों (लूम्स) की खटखटाहट 24 घंटे गूंजती थी, वे अब दिन के आठ घंटे भी मुश्किल से चल पा रहे हैं। वजह है अंतरराष्ट्रीय हालात- अमेरिका की टैरिफ नीति और नेपाल में भड़की हिंसा। इन दोनों घटनाओं ने मिलकर भागलपुर के बुनकरों और कारोबारियों की कमर तोड़ दी है।

ट्रंप की टैरिफ नीति से ध्वस्त एक्सपोर्ट

अमेरिका भारत के लिए सिल्क उत्पादों का बड़ा बाजार रहा है। लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्त्रों पर 50 प्रतिशत तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने से वहां की डिमांड बुरी तरह गिर गई है। भागलपुर के कारोबारी बताते हैं कि इस फैसले से लगभग 100 करोड़ से अधिक का आर्डर डंप हो गया है। यह सिर्फ मौजूदा साल का संकट नहीं है, बल्कि आने वाले सालों की योजनाएं भी बर्बाद हो चुकी हैं। व्यापारियों का कहना है कि पहले से तैयार स्टॉक गोदामों में अटक गया है और नए ऑर्डर भी नहीं आ रहे हैं।

नेपाल में फैली हिंसा ने बढ़ाई परेशानी

भागलपुरी सिल्क का दूसरा बड़ा बाजार नेपाल रहा है। लेकिन हाल ही में नेपाल में फैली जबरदस्त हिंसा और अस्थिरता ने वहां का कारोबार पूरी तरह रोक दिया है। संसद भवन और सरकारी दफ्तरों तक को जला दिया गया है। ऐसे में नेपाल के खरीदार न तो माल लेने की स्थिति में हैं और न ही भुगतान कर पा रहे हैं। बुनकर मासूम अंसारी बताते हैं कि उनका तैयार माल गोदाम में पड़ा हुआ है, लेकिन खरीदार कह रहे हैं कि “न माल आ पाएगा और न पेमेंट हो पाएगा।”

कारोबारियों की गहराती चिंता

सिल्क कारोबारी तहसीन शबाब का कहना है कि “भागलपुरी सिल्क विदेशों में बहुत पसंद किया जाता है, लेकिन पिछले कुछ महीनों ने हमें तोड़कर रख दिया है। ट्रंप के टैरिफ ने हमारी दो साल की प्लानिंग चौपट कर दी है। स्टॉक रुका पड़ा है, नए ऑर्डर भी बंद हैं। इस साल तो नुकसान तय है ही, अगले साल की स्थिति भी खराब दिख रही है।”

बुनकरों की रोज़ी-रोटी पर असर

चंपानगर इलाके में हर घर से करघे की आवाजें आती थीं। लेकिन अब वहां सन्नाटा है। पहले जहां लूम्स दिन-रात चलते थे, वहीं अब उनकी रफ्तार धीमी हो गई है। बुनकरों की आय घट गई है और कई परिवारों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ गई है।

अंतरराष्ट्रीय नीतियों और पड़ोसी देशों की अस्थिरता ने भागलपुर के सिल्क उद्योग को गहरे संकट में डाल दिया है। 100 से 150 करोड़ रुपए तक का नुकसान पहले ही हो चुका है और भविष्य भी धुंधला नजर आ रहा है। अगर हालात जल्द नहीं सुधरे, तो सिल्क नगरी की पहचान ही खतरे में पड़ सकती है।

Rishabh Chhabra
Author: Rishabh Chhabra