Pitra Paksha: आस्था की परंपरा, पूर्वजों का सम्मान, संस्कारों से जुड़ाव, यही है श्राद्ध की असली भावना

भारतीय समाज में पितरों का स्मरण करना केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि कृतज्ञता का प्रतीक भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक लोकोक्ति है कि “आये कनागत फूले कांस, बांभन ऊलें नौ-नौ बांस”। यहाँ कनागत यानी श्राद्ध पक्ष का संकेत है। जब खेतों में कांस फूलने लगते हैं, तब समझ लिया जाता है कि बरसात विदा हो रही है और श्राद्ध पक्ष आ गया है। यही समय है जब हर हिंदू गृहस्थ अपने पितरों को स्मरण करता है और उनके नाम पर भोज और दान करता है।

16 दिनों तक चलता है पितृ पक्ष

पितृ पक्ष कुल 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पितरों की तिथि अनुसार श्राद्ध, तर्पण और भोज का आयोजन करते हैं। ब्राह्मणों को भोजन कराने से लेकर गाय, कौए और कुत्ते को अन्न खिलाने तक कई विधियां निभाई जाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से इन रस्मों का कोई प्रमाण नहीं, लेकिन इसकी मूल भावना यही है कि हम अपने पूर्वजों के श्रम और संस्कारों को याद करें।

दुनिया के अन्य हिस्सों में भी पूर्वजों को याद करने की परंपरा

ऐसी परंपराएं केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी मौजूद हैं। मुसलमान मृतकों के नाम पर दुआ, कुरान-ख्वानी और कब्रों पर रोशनी करते हैं। ईसाई समाज ऑल सोल्स डे पर अपने पूर्वजों की कब्रों की सफाई, सजावट और प्रार्थना करता है। जापान का ओबोन और चीन का चिंग-मिंग पर्व भी पितरों के सम्मान के लिए ही मनाया जाता है। कोरिया, अफ्रीका और अमेरिका की आदिवासी संस्कृतियों में भी पुरखों को स्मरण करने की विशिष्ट परंपराएं हैं।

तीर्थों पर पितृ तर्पण की विशेष मान्यता

भारत में गया, प्रयागराज, वाराणसी, हरिद्वार और रामेश्वरम जैसे तीर्थों पर पितृ तर्पण की विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि यहां तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

दरअसल, पितृ पक्ष केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़े रहने का अवसर है। यह हमें याद दिलाता है कि हम अकेले नहीं हैं, बल्कि हमारी पहचान में हमारे पूर्वजों का श्रम, संस्कार और त्याग गहराई से जुड़ा हुआ है। पितृ पक्ष खत्म होते ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है और शुभ कार्यों का नया दौर शुरू होता है।

इस तरह पितृ पक्ष भारतीय समाज में कृतज्ञता, स्मरण और आस्था का अद्भुत संगम है, जो पीढ़ियों को जोड़ता है।

Rishabh Chhabra
Author: Rishabh Chhabra