Politics: ब्राह्मण बनाम यादव विवाद में उलझी सपा, इटावा कांड से सियासी समीकरण बिगड़ने का खतरा

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर जातीय ध्रुवीकरण मैं उलझती दिख रही है। इटावा जिले के दांदरपुर में कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत यादव के साथ कथित बदसलूकी और अत्याचार के मामले ने तूल पकड़ लिया है। अखिलेश यादव इटावा कांड के बाद खुलकर कथावाचकों के पक्ष में उतर आए। अखिलेश ने ब्राह्मणों के लिए प्रभुत्ववादी, वर्चस्ववादी विशेषण का इस्तेमाल किया। यह विरोधभरी सियासत कहीं सपा के लिए बैकफायर ना कर जाए।

इटावा जिले के दांदरपुर में कथावाचक मुकुट मणि यादव और संत यादव के साथ कथित बदसलूकी और अत्याचार के मामले ने तूल पकड़ लिया है। आरोप ब्राह्मणों पर लगे और इसके बाद समाजवादी पार्टी (सपा) और उसके मुखिया अखिलेश यादव खुलकर यादव पीड़ितों के समर्थन में उतर आए।

अखिलेश यादव ने न सिर्फ पीड़ितों के लिए न्याय की मांग की, बल्कि अपने बयान में ब्राह्मणों को “प्रभुत्ववादी” और “वर्चस्ववादी” कह डाला। यही बयान अब उनके लिए सियासी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। सवाल उठ रहा है कि क्या सपा का यह रुख ब्राह्मण मतदाताओं को नाराज कर देगा?

यूपी में 10% ब्राह्मण वोट

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी भले ही लगभग 10% है, लेकिन इनका असर राज्य की करीब 100 विधानसभा सीटों पर पड़ती है। फैजाबाद, वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर, कानपुर, अमेठी जैसे जिले अधिक ब्राह्मण वाले माने जाते हैं। ब्राह्मण वोटिंग ट्रेंड सत्ता में बदलाव की दिशा तय करने में अक्सर अहम भूमिका निभाते हैं।

1950–2022 से ब्राह्मणों का बदलता रुख

यूपी में ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने लंबे समय तक सरकार चलाई। 1989 के बाद राम मंदिर आंदोलन, मंडल-कमंडल की पॉलिटिक्स के दौर में ब्राह्मणों के बीच बीजेपी मजबूत हुई।

गठबंधन पॉलिटिक्स के सहारे ही सही, बीजेपी ने भी सूबे की सत्ता का स्वाद चखा। साल 2002 के बाद ब्राह्मण बीजेपी से नाराज हुए और 2005 से ही मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ब्राह्मण सम्मेलनों के जरिये इन्हें साधने की कवायद शुरू कर दी। मायावती की पार्टी ने 2007 के विधानसभा चुनाव में 56 ब्राह्मणों को टिकट दिया, जिनमें से 41 चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2012 में सपा बड़ी जीत के साथ सत्ता में आई, अखिलेश यादव की अगुवाई में सरकार बनाई तो उसके पीछे भी ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव बता चुके हैं। 2017 के चुनाव से इस वर्ग का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ हो लिया और लगातार दो बार से सूबे में कमल निशान वाली पार्टी की बहुमत की सरकार है।2022 में करीब 89% ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया।

सपा के पाली में ब्राह्मण वोट भी

पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 में भी चार ब्राह्मणों को टिकट दिया, जिनमें से एक सनातन पांडेय बलिया से जीतकर सांसद बने। जनेश्वर मिश्रा जैसे बड़े ब्राह्मण नेता भी सपा का चेहरा रह चुके हैं। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 52 ब्राह्मण विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे। सपा के 5 ब्राह्मण विधायक जीते थे।

2024 में अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) गठबंधन के साथ ब्राह्मणों को भी जोड़ने की कोशिश की है। देवरिया कांड के समय अखिलेश ने एक यादव और एक ब्राह्मण परिवार से समान रूप से मिलने का प्रयास किया था, ताकि संतुलन बना रहे।

ब्राह्मण वोट की गणित में जुटी सपा

पीडीए के साथ ब्राह्मणों को भी जोड़कर नया वोट गणित गढ़ने की कोशिश में जुटे अखिलेश देवरिया में प्रेम यादव की हत्या के बाद एक ब्राह्मण परिवार के पांच सदस्यों की लिंचिंग के मामले में भी खुलकर किसी का पक्ष लेने से बचते दिखे थे। अखिलेश ने प्रेम यादव के परिवार से मुलाकात की तो वह ब्राह्मण परिवार से भी मिलने गए थे। मुलाकात हुई या नहीं, यह अलग बात है।

इटावा कांड ने बिगाड़ा समीकरण?

इटावा घटना को सपा ने खुलकर जातीय रंग दे दिया। यादव संगठनों ने भी ब्राह्मणों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।लेकिन इटावा की घटना के बाद अखिलेश ने ब्राह्मणों को प्रभुत्ववादी और वर्चस्ववादी तक कह दिया। ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग पहले ही सपा से दूरी बनाए हुए है। अब जो थोड़ा बहुत जुड़ाव था, वह भी खतरे में है। क्या अखिलेश यादव का यह जातीय कार्ड सपा को वोट दिलाएगा या नुकसान पहुंचाएगा?

Rishabh Chhabra
Author: Rishabh Chhabra

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