सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एससी एसटी रिजर्वेशन मामले में सबकास्ट या क्रीमी लेयर वाले फॉर्मूले को अपनाने का फैसला दिया था.इसको लेकर काफी बवाल मचा था. वहीं अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शनिवार को क्रीमी लेयर की अवधारणा के आधार पर एससी और एसटी को आरक्षण देने पर केंद्र सरकार के इनकार की जमकर आलोचना की है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसद में विधेयक लाना चाहिए था.
पूना पैक्ट के माध्यम से सबसे पहले मिला था आरक्षण
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शनिवार को इस पर ट्वीट कर कहा कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने फैसला किया था कि जिसमें उन्होंने एससी-एसटी वर्ग के लोगों के लिए उप-वर्गीकृत करने की बात की थी. इस फैसले में एससी-एसटी वर्ग के आरक्षण में क्रीमी लेयर की भी बात की गई थी. भारत में SC-ST समुदाय को सबसे पहले आरक्षण बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर के पूना पैक्ट के माध्यम से मिला था. बाद में पंडित नेहरू और महात्मा गांधी जी के योगदान से इसे संविधान में मान्यता देकर, नौकरी और शिक्षण संस्थानों में भी लागू किया गया था.
70 साल बाद भी SC-ST की वैकेंसी खाली
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल किया कि परंतु 70 सालों के बाद भी सरकारी नौकरियों में जब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों की भर्तियां देखते है. तो पता चलता है कि अभी भी जो वैकेंसी है वो नहीं भरी जा रही हैं. अधिकतर पद खाली है. जिसका मतलब साफ है कि इस वर्ग के लोग सम्मिलित रूप से मिलकर भी इन पदों को नहीं भर पा रहे हैं. ये अभी भी सामान्य वर्ग के लोगों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर सकते हैं. खड़गे ने आगे कहा कि और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आरक्षण का आधार किसी समुदाय या व्यक्ति की आर्थिक तरक्की नहीं था. बल्कि यह समाज में हजारों सालों से फैली अस्पृश्यता, छूआछूत को मिटाना और खत्म करना था और यह समाज से अभी भी खत्म नहीं हुआ है. कई उदाहरण रोज हमारे सामने आते हैं. इसलिए SC-ST समुदाय में क्रीमी लेयर को लेकर बात करना ही गलत है. कांग्रेस पार्टी इसके खिलाफ है.
आरक्षण पर निरंतर प्रहार कर रही सरकार
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आगे कहा कि एक तरफ सरकार धीरे-धीरे सरकारी पीएसयू बेचकर नौकरियां खत्म कर रही है. इसके ऊपर से भाजपा की दलित-आदिवासी मानसिकता आरक्षण पर निरंतर प्रहार कर रही है. अगर सरकार चाहती तो इस मुद्दे को इसी सत्र में संविधान संशोधन लाकर सुलझा सकती थी. मोदी सरकार 2-3 घंटे के अंदर नई बिल ले आती है तो ये भी संभव था.
