मोदी सरकार देश के प्रशासनिक ढांचे को नई पहचान देने की दिशा में लगातार कदम उठा रही है। मकसद यह है कि शासन का फोकस सत्ता से सेवा की ओर और अधिकार से जिम्मेदारी की ओर बढ़े। इसी सोच के तहत सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में बन रहे नए प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम ‘सेवा तीर्थ’ रखा गया है। वहीं, देशभर के राजभवनों को अब ‘लोक भवन’ नाम दिया जा रहा है। यह बदलाव सरकारी संस्थानों में एक नई कार्यसंस्कृति की शुरुआत का संकेत है, जहां सत्ता का प्रतीक अब सेवा और कर्तव्य का संदेश देने लगा है।
बदलाव जो सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी है
सरकार द्वारा किए जा रहे ये कदम केवल एडमिनिस्ट्रेशन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समाज की सोच में सांस्कृतिक और नैतिक बदलाव भी दिखाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शासन की उन जगहों और भवनों को नया स्वरूप दिया जा रहा है, जो सीधे तौर पर सरकार की नीतियों की पहचान बनते हैं। राजपथ का ‘कर्तव्य पथ’ बनना इसी सोच की शुरुआत थी। यह संदेश देता है कि सत्ता सिर्फ अधिकार नहीं बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी है, और जनता की सेवा ही शासन का वास्तविक उद्देश्य है।
नाम जो जिम्मेदारी और कल्याण का संदेश दें
प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास का नाम 2016 में ‘लोक कल्याण मार्ग’ रखा गया था। यह नाम बताता है कि यह स्थान जनता के हित और कल्याण के लिए समर्पित है, न कि किसी विशेषाधिकार का प्रतीक। इसी कड़ी में पीएमओ के नए कॉम्प्लेक्स को ‘सेवा तीर्थ’ नाम दिया गया है। यह नाम सरकार के कामकाज के केंद्र को एक ऐसी जगह के रूप में पेश करता है जहां राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को तय किया जाता है और हर फैसला नागरिकों की भलाई को ध्यान में रखकर लिया जाता है।
कर्तव्य और सेवा की भावना पर आधारित नया ढांचा
सेंट्रल सेक्रेटेरिएट का नाम अब ‘कर्तव्य भवन’ रखा गया है। यह न सिर्फ एक बड़ा प्रशासनिक हब है, बल्कि यह उस भावना को भी दर्शाता है कि सरकारी सेवा वास्तव में एक प्रतिबद्धता है। प्रत्येक नाम परिवर्तन इस बात का संकेत है कि देश की शासन व्यवस्था अधिकारों के बोझ से हटकर कर्तव्य और सेवा की भावना की ओर बढ़ रही है। यह बदलाव बताता है कि भारत का लोकतंत्र शक्ति और स्टेटस नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और सेवा को अपना असली मूल्य मान रहा है।
सोच में बदलाव की दिशा में बड़ा कदम
सरकारी इमारतों और सड़क के नाम बदलना केवल औपचारिक कदम नहीं, बल्कि एक गहरे आइडियोलॉजिकल परिवर्तन की ओर इशारा है। यह संदेश है कि जनता की सेवा ही प्रशासन की नींव है। नाम बदलने के साथ-साथ शासन की सोच और काम करने की शैली में भी बदलाव आता है- जहां हर पद, हर संस्था और हर नीति का लक्ष्य देश और नागरिकों का कल्याण है।