Shocking: 7 दिन सोशल मीडिया डिटॉक्स, 24% कम हुआ डिप्रेशन, नई रिसर्च का बड़ा खुलासा

आज की तेज़ रफ़्तार डिजिटल लाइफ में सोशल मीडिया हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुका है। सुबह उठते ही हम मोबाइल उठाकर रील्स, पोस्ट या स्टोरीज़ देखने में लग जाते हैं और दिन भर हर थोड़ी देर में स्क्रीन चेक करते रहते हैं। हम अक्सर मान लेते हैं कि सोशल मीडिया हमें रिलैक्स करता है, लेकिन इसका ज़्यादा इस्तेमाल धीरे-धीरे मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस चिंता को और पक्का कर दिया है। रिसर्च के मुताबिक केवल सात दिन सोशल मीडिया से दूर रहने पर युवाओं में डिप्रेशन के लक्षण 24% तक घट गए, एंग्ज़ायटी 16.1% तक कम हुई और नींद की दिक्कतों में भी करीब 14.5% सुधार देखने को मिला। ऐसे में सोशल मीडिया डिटॉक्स मानसिक शांति पाने का एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

लक्ष्य तय करने का पहला कदम

डिटॉक्स की शुरुआत इस समझ के साथ होती है कि आप इससे क्या पाना चाहते हैं। जब आप खुद से पूछते हैं कि सोशल मीडिया से दूरी क्यों ज़रूरी है- बेहतर ध्यान, कम तनाव या अच्छी नींद तो मन भी इस बदलाव के लिए तैयार होने लगता है। अपने लक्ष्य लिखने से दिमाग स्पष्ट दिशा में काम करता है और डिटॉक्स का सफ़र आसान बनता है।

नोटिफिकेशन से दूरी बनाना

दूसरे चरण में सोशल मीडिया के नोटिफिकेशन बंद करना बहुत प्रभावी साबित होता है। बार-बार आने वाली घंटियों और पॉप-अप्स की वजह से हम अनजाने में फोन उठाते रहते हैं। ऐप्स को होम स्क्रीन से हटाना भी एक अच्छा तरीका है, जिससे स्क्रॉल करने की आदत धीरे-धीरे कम होने लगती है।

हेल्दी आदतों की ओर कदम

तीसरे दिन आप उस समय को नई और सकारात्मक आदतों में बदल सकते हैं, जो पहले बिना सोचे-समझे स्क्रॉलिंग में चला जाता था। किताब पढ़ना, हल्की एक्सरसाइज, कुकिंग या अपनी पसंदीदा हॉबी के लिए समय निकालना मानसिक सुकून देता है और दिमाग को बेहतर दिशा में व्यस्त रखता है।

ऑफलाइन दुनिया से जुड़ाव

चौथे दिन का मकसद स्क्रीन से हटकर असल दुनिया से कनेक्ट होना है। टहलना, पार्क में बैठना, परिवार के साथ समय बिताना या बिना फोन के भोजन करना आपको डिजिटल ओवरलोड से राहत देता है और मूड को बेहतर करता है।

खुद से बातचीत और जर्नलिंग

पांचवें दिन कुछ मिनट शांति से बैठकर यह महसूस करना ज़रूरी है कि सोशल मीडिया से दूरी आपके मन को कैसी लग रही है। छोटी-सी जर्नलिंग आपके भीतर आए बदलावों को समझने में मदद करती है और आगे के लिए प्रेरणा देती है।

रिश्तों की गर्माहट महसूस करना

छठे दिन दोस्तों, परिवार या सहकर्मियों के साथ समय बिताना भावनात्मक स्वास्थ्य को मजबूत करता है। रियल लाइफ बातचीत वह सुकून देती है जो ऑनलाइन इंटरैक्शन नहीं दे सकता।

पूरे हफ्ते का अनुभव समझें

सातवें दिन अपने पूरे हफ्ते का अनुभव समझें। क्या नींद सुधरी, क्या मन हल्का लगा, क्या ध्यान बढ़ा? इस आत्ममूल्यांकन के आधार पर तय करें कि आगे कौन-सी आदतें अपनानी हैं, ताकि आपकी जिंदगी और संतुलित और स्वस्थ बन सके।

Rishabh Chhabra
Author: Rishabh Chhabra