दिल्ली के दिल यानी लाल किले के पास हुआ कार धमाका पूरे देश को झकझोर गया। इस भयानक विस्फोट में 12 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। अचानक हुए इस हादसे से राजधानी में दहशत फैल गई और हर तरफ बस यही सवाल गूंजने लगा, आखिर यह हुआ कैसे और कौन था इसके पीछे? क्या यह किसी बड़ी आतंकी साजिश का नतीजा था या किसी की घबराहट में हुआ हादसा?
पोस्टर बना सुराग, जिसने बचाया बड़ा हमला
इस कहानी की शुरुआत श्रीनगर के नौगाम इलाके से हुई, जहां 18 अक्टूबर की सुबह दीवारों पर जैश-ए-मोहम्मद के धमकी भरे पोस्टर दिखाई दिए। इन पोस्टर्स को देखकर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की। यही छोटी सी जांच आगे चलकर 800 किलोमीटर दूर फरीदाबाद तक पहुंची और एक बड़े आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश कर दिया। पुलिस ने पोस्टर्स में छिपे कोड्स को डिकोड किया और पाया कि विदेश में बैठे हैंडलर्स भारत में बड़े हमले की तैयारी कर रहे हैं।
श्रीनगर से फरीदाबाद तक पहुंची जांच
जांच आगे बढ़ी तो कई ओवरग्राउंड वर्कर्स गिरफ्तार हुए। पूछताछ में खुलासा हुआ कि कुछ डॉक्टर, मौलवी और छात्र जैश-ए-मोहम्मद के संपर्क में थे। इन्हीं में से एक ‘डॉक्टर्स गैंग’ सक्रिय था, जो विस्फोटक तैयार करने और छिपाने में माहिर था। जांच श्रीनगर से निकलकर सहारनपुर और फिर फरीदाबाद तक पहुंची, जहां इस नेटवर्क की गहराई सामने आई।
डॉक्टरों का आतंक नेटवर्क उजागर
6 नवंबर को सहारनपुर से डॉक्टर अदील अहमद राठर को गिरफ्तार किया गया। उसकी निशानदेही पर फरीदाबाद में मुजम्मिल अहमद पकड़ा गया, जिसने पुलिस के सामने कबूल किया कि उसने अपने घर में करीब 2900 किलो विस्फोटक सामग्री छिपा रखी है। संयुक्त अभियान में भारी मात्रा में रसायन, टाइमर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बरामद किए गए। यह वही वक्त था जब दिल्ली के पास हमले की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी।
लाल किला ब्लास्ट: गलती या साजिश?
जांच में सामने आया कि ‘डॉक्टर्स ऑफ टेरर’ नामक इस नेटवर्क में चार लोग थे- डॉ. अदील राठर, डॉ. मुजम्मिल शकील, डॉ. शाहीन शाहिद और डॉ. उमर महमूद। तीन गिरफ्तार हुए, जबकि उमर भाग गया और उसने घबराहट में लाल किले के पास कार ब्लास्ट कर दिया। पुलिस का मानना है कि यह विस्फोट किसी पैनिक रिएक्शन का नतीजा था, क्योंकि अगर यह योजनाबद्ध होता, तो तबाही कई गुना बड़ी होती।
एनआईए के हाथ में जांच, स्लीपर सेल्स पर निगाह
अब यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के पास है। एजेंसियां यह पता लगाने में जुटी हैं कि क्या मारा गया व्यक्ति वाकई डॉ. उमर महमूद था। डीएनए जांच जारी है और उसके परिवार से पूछताछ की जा रही है। साथ ही दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों पर भी नजर रखी जा रही है। अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उस छोटे पोस्टर को हल्के में ले लिया होता, तो शायद देश किसी बड़े आतंकवादी हमले का शिकार बन जाता। उनकी सतर्कता ने न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश को एक बड़ी तबाही से बचा लिया।