सर्दियों की दस्तक के साथ ही दिल्ली-एनसीआर एक बार फिर जहरीली धुंध में घिर गया है। यह अब कोई नई खबर नहीं, बल्कि एक सालाना त्रासदी बन चुकी है। इस बार हवा में फैला यह ज़हर सिर्फ हमारे फेफड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हमारी जेब, सेहत और भविष्य, तीनों पर भारी पड़ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी राजधानी की हवा लोगों के लिए जीना मुश्किल बना रही है।
दिल्ली से भागने को तैयार लोग
एक हालिया सर्वे ने चौंकाने वाला खुलासा किया है, दिल्ली के हर 10 में से 4 लोग शहर छोड़ना चाहते हैं। ये लोग लगातार बढ़ते प्रदूषण और सांस रोक देने वाले हालात से परेशान हैं। कभी अवसरों का केंद्र मानी जाने वाली राजधानी अब लोगों के लिए ‘गैस चैंबर’ बन चुकी है। यह केवल स्वास्थ्य नहीं, बल्कि आर्थिक असंतुलन का संकेत है। यही नहीं, लगभग 57 प्रतिशत प्रवासी मजदूर भी अब दिल्ली की जगह अपने गृह नगर लौटना पसंद कर रहे हैं।
टैलेंट हब की पहचान पर संकट
दिल्ली को हमेशा एक टैलेंट हब के रूप में जाना जाता था, लेकिन बढ़ता प्रदूषण अब उसकी पहचान पर ग्रहण लगा रहा है। सर्वे के मुताबिक, शहर में रहने वाले हजारों पेशेवर लोग अब स्वच्छ वातावरण की तलाश में दूसरे शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। जब किसी शहर से न सिर्फ प्रतिभा बल्कि श्रम शक्ति भी पलायन करने लगे, तो यह उसके भविष्य के लिए गहरी चिंता का विषय है।
अर्थव्यवस्था पर प्रदूषण का वार
दिल्ली की जहरीली हवा अब अर्थव्यवस्था का दम घोंट रही है। रिपोर्टों के मुताबिक, सिर्फ साल 2019 में वायु प्रदूषण से दिल्ली को 5.6 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। यह राजधानी के कुल जीडीपी का लगभग 6 प्रतिशत है। व्यापारी संगठन सीटीआई के अनुसार, प्रदूषण की वजह से दिल्ली का रोजाना व्यापार करीब 100 करोड़ रुपये घटा है। लोग घरों से बाहर नहीं निकलना चाहते, जिससे बाजार खाली और खरीदारी ठप पड़ जाती है।
पर्यटन और रोजगार पर असर
सर्दियों का मौसम दिल्ली में पर्यटन का चरम समय होता है, लेकिन “दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी” की छवि विदेशी पर्यटकों को दूर भगा रही है। एनसीआर से रोज़ आने वाले खरीदारों की संख्या घटकर अब एक लाख रह गई है। इससे न सिर्फ व्यापार ठप हुआ है, बल्कि होटल, टैक्सी और स्थानीय रोजगार पर भी असर पड़ा है।
कृत्रिम बारिश का भी नहीं हुआ असर
हर साल की तरह इस बार भी समाधान के नाम पर अस्थायी प्रयोग हुए। हाल ही में 3.21 करोड़ रुपये खर्च कर कृत्रिम बारिश की कोशिश की गई, लेकिन यह भी नाकाम साबित हुई। कुछ जगहों पर हल्की फुहारें पड़ीं, मगर प्रदूषण जस का तस रहा। यह दिखाता है कि समस्या की जड़ पर काम करने के बजाय सरकार हर साल तात्कालिक उपायों पर निर्भर है।
अब वक्त है स्थायी समाधान का
दिल्ली-एनसीआर की हवा अब केवल एक पर्यावरणीय संकट नहीं रही, बल्कि यह एक मानवीय और आर्थिक आपदा का रूप ले चुकी है। जब तक प्रदूषण को पूरे साल नियंत्रित करने की ठोस नीति नहीं बनाई जाएगी, तब तक दिल्ली की हवा, सेहत और अर्थव्यवस्था तीनों का दम यूं ही घुटता रहेगा।