सनातन धर्म में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। इस दिन अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर किए गए दान, जप, तप और पूजन का फल कभी समाप्त नहीं होता, इसलिए इसे ‘अक्षय’ कहा गया है- जिसका अर्थ है कभी न खत्म होने वाला। इस दिन जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से पूजा-पाठ करता है, उसे अनंत पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि कार्तिक शुक्ल नवमी को धर्म, कर्म और आस्था का विशेष संगम माना गया है।
आंवला नवमी के रूप में भी प्रसिद्ध
अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का निवास आंवले के पेड़ में होता है। इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा विशेष रूप से की जाती है। श्रद्धालु आंवले के पेड़ के नीचे भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की उपासना करते हैं। ऐसा करने से जीवन में सौभाग्य, धन और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस वर्ष अक्षय नवमी का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। भक्त इस दिन स्नान, दान और व्रत के साथ आंवला पूजन का विशेष आयोजन करते हैं।
पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं
धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि अक्षय नवमी का दिन बहुत प्राचीन और पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने आंवले के पेड़ में वास किया था, इसलिए इसकी पूजा से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग का प्रारंभ हुआ था। इसलिए यह तिथि सत्य, धर्म और नए युग के आरंभ का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन व्रत, स्नान, गोसेवा और दान करने से जीवन में स्थायी सुख और शांति आती है।
महिलाओं के लिए भी विशेष दिन
अक्षय नवमी का दिन महिलाओं के लिए भी बेहद खास होता है। इस दिन वे परिवार की सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए व्रत रखती हैं और भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किए गए सभी शुभ कार्य, जैसे गंगा स्नान, अन्न दान या वस्त्र दान, कभी व्यर्थ नहीं जाते। ये कर्म पापों का नाश करते हैं और जीवन में शुभता का संचार करते हैं। इसलिए इसे धार्मिक कार्यों के अक्षय फल देने वाला दिन कहा गया है- यानी इस दिन किया गया हर शुभ कार्य अनंत काल तक फल देता है।
 
				 
								