Chhath Puja कल से होगी शुरू, जानिए बिहार के उस जिले का नाम, जहां से हुई थी इसकी शुरुआत

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा कल से शुरू हो रहा है। यह पर्व भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित है। साल में दो बार मनाई जाने वाली यह पूजा विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व 28 अक्टूबर को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होगा।

नहाय-खाय से शुरू होता है महापर्व

छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन भक्त नदी या तालाब में स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इसके बाद खरना, संध्या अर्घ्य और उदय अर्घ्य की विधि पूरी की जाती है। हर दिन का अपना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व माना जाता है।

छठ पूजा की पौराणिक उत्पत्ति

छठ पूजा का इतिहास बेहद प्राचीन है। कहा जाता है कि यह पर्व त्रेता युग से प्रचलित है। इसकी उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएँ मिलती हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कथा माता सीता और भगवान राम से जुड़ी है।

बिहार के मुंगेर से हुई थी शुरुआत

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत सबसे पहले बिहार के मुंगेर जिले से हुई थी। कहा जाता है कि माता सीता ने सबसे पहले मुंगेर के गंगा तट पर सूर्य देव की पूजा की थी। वाल्मीकि और आनंद रामायण में इसका उल्लेख मिलता है कि रावण वध के बाद भगवान राम को “ब्राह्मण हत्या” का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने राजसूय यज्ञ कराने का निर्णय लिया। मुग्दल ऋषि के कहने पर भगवान राम और माता सीता मुंगेर पहुंचे। ऋषि ने माता सीता को सूर्य देव की आराधना करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता ने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को मुंगेर के बबुआ गंगा घाट पर सूर्य देव की उपासना की।

सीता चारण मंदिर आज भी है गवाही

जिस स्थान पर माता सीता ने छठ व्रत किया था, वहां आज सीता चारण मंदिर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में माता सीता के चरणों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान भी मौजूद हैं, जो इस पवित्र परंपरा की साक्षी हैं।

छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोक आस्था और अनुशासन का प्रतीक है। यह पर्व न सिर्फ सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है, बल्कि मानव और प्रकृति के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। मुंगेर की धरती से शुरू हुई यह परंपरा आज पूरी दुनिया में श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक बन चुकी है।

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Author: Rishabh Chhabra