दुनियाभर में रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) को लेकर चर्चा तेज़ हो गई है। इन 17 दुर्लभ धातुओं का इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, पवन चक्कियां और डिफेंस सिस्टम जैसी तकनीक में होता है। इसे 21वीं सदी का “नया तेल” कहा जा रहा है क्योंकि इन पर भविष्य की तकनीक और देशों की ताकत निर्भर है।
रेयर अर्थ क्यों हैं खास
इन धातुओं को उतनी दुर्लभ नहीं माना जाता, लेकिन इनका शुद्धिकरण और इस्तेमाल लायक बनाना बेहद मुश्किल और महंगा है। यही कारण है कि ये रणनीतिक और कीमती हैं। आधुनिक तकनीक का हर क्षेत्र आपका फोन, इलेक्ट्रिक कार या रक्षा उपकरण इन पर निर्भर करता है।
भारत की दावेदारी
विश्व स्तर पर चीन का दबदबा है। दुनिया के 70% खनन और 90% रिफाइनिंग चीन के हाथ में है। लेकिन भारत में भी लगभग 6% रेयर अर्थ भंडार मौजूद हैं, खासकर केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और गुजरात में। वर्तमान में भारत का उत्पादन वैश्विक मांग के मुकाबले केवल 1% है, लेकिन सरकार इसे बढ़ाने की तैयारी कर रही है।
मिशन क्रिटिकल मिनरल
भारत सरकार ने ‘नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (2025)’ शुरू किया है। इसका उद्देश्य खोज, खनन और प्रसंस्करण को तेजी से बढ़ाना है। इस दिशा में हाल ही में IREL (इंडिया) लिमिटेड को अमेरिकी निर्यात नियंत्रण सूची से हटाना बड़ी सफलता है। अब IREL विशाखापत्तनम में सैमरियम-कोबाल्ट मैग्नेट का घरेलू उत्पादन शुरू करेगा, जो उच्च-तकनीक और रक्षा उपकरणों के लिए जरूरी है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सप्लाई चेन
भारत KABIL और अमेरिका के नेतृत्व वाले ‘मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ के जरिए वैश्विक बाजार में अपनी भूमिका मजबूत कर रहा है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश चीन पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। IEA के अनुसार, 2030 तक चीन की खनन हिस्सेदारी 69% से घटकर 51% और रिफाइनिंग 90% से 76% रह सकती है।
भविष्य की मांग और अवसर
सरकार द्वारा किए गए सुधार और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएं निजी निवेश को बढ़ावा दे रही हैं। 2040 तक रेयर अर्थ की मांग 300% से 700% तक बढ़ने की संभावना है। भारत की यह पहल केवल घरेलू जरूरतें पूरी करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे क्लीन टेक्नोलॉजी में वैश्विक नेता बनाने का रास्ता भी खोलती है।