बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के करीब आते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। एनडीए और महागठबंधन दोनों गठबंधन इस बार नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रहे हैं। दोनों की उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर साफ है कि जातीय संतुलन इस बार चुनावी रणनीति का सबसे बड़ा हथियार बनने वाला है।
एनडीए का दांव कुशवाहा समाज पर
लोकसभा चुनाव 2024 में हुई हार से सबक लेते हुए एनडीए ने इस बार कुशवाहा समाज को अपने साथ मजबूती से जोड़ने की कोशिश की है। दक्षिण बिहार की कई सीटों पर पिछली बार आरजेडी ने कुशवाहा वोटरों में सेंध लगाई थी, जिससे एनडीए का समीकरण बिगड़ गया था। इस बार एनडीए ने कुल 23 कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट देकर यह संकेत दे दिया है कि वह इस समुदाय को साधने में कोई कमी नहीं छोड़ेगा। इनमें भाजपा के 7, जदयू के 13 और रालोमो के 3 उम्मीदवार शामिल हैं।
महागठबंधन ने बढ़ाई भूमिहारों की हिस्सेदारी
वहीं महागठबंधन की रणनीति इस बार कुछ अलग है। इसने कुशवाहा समाज की तुलना में भूमिहार समाज पर अधिक भरोसा जताया है। अब तक घोषित उम्मीदवारों में 17 भूमिहार और केवल 12 कुशवाहा उम्मीदवार हैं। महागठबंधन में आरजेडी को 135, कांग्रेस को 61, वीआईपी को 16 और वामदलों को 31 सीटें मिली हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आरजेडी इस बार अपने पारंपरिक एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के साथ-साथ सवर्ण वोटों को भी जोड़ने की कोशिश कर रही है।
एनडीए में सीट बंटवारा
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए ने सीट बंटवारे का ऐलान कर दिया है।
भाजपा: 101 सीटें
जदयू: 101 सीटें
लोजपा (रा): 29 सीटें
हम पार्टी: 6 सीटें
रालोमो: 6 सीटें
एनडीए की इस रणनीति का मकसद जातीय संतुलन बनाए रखते हुए हर क्षेत्र में मजबूती से उतरना है।
2020 के चुनाव का सबक
साल 2020 में पहले चरण की 71 सीटों में से महागठबंधन ने 48 सीटें जीती थीं, जबकि एनडीए को सिर्फ 21 सीटें मिली थीं। उस समय चिराग पासवान की एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी ने अलग होकर चुनाव लड़ा था, जिससे एनडीए को भारी नुकसान हुआ। अब दोनों पार्टियां एनडीए के साथ हैं, जिससे गठबंधन को उम्मीद है कि वोटों का बिखराव नहीं होगा।
जातीय समीकरणों की लड़ाई बना चुनाव
बिहार चुनाव 2025 पूरी तरह से जातीय समीकरणों की लड़ाई बन चुका है। जहां एनडीए कुशवाहा और पिछड़े वर्गों को साथ लाने की कोशिश में है, वहीं महागठबंधन भूमिहार और अल्पसंख्यक वोटरों पर दांव लगा रहा है। आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन-सा गठबंधन अपने सामाजिक समीकरण को सही दिशा में मोड़ पाता है।