सनातन परंपरा में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है। इसे अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का समय माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध न करने से आत्माएं प्रेत योनि में भटकने लगती हैं और अपने वंशजों को परेशान कर सकती हैं। गुरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितरों की पूजा से पुष्टि, दीर्घायु, तेज, संतान सुख और धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
घायल चतुर्दशी की विशेषता
पितृ पक्ष की हर तिथि पर श्राद्ध किया जाता है, लेकिन चतुर्दशी तिथि, जिसे घायल चतुर्दशी कहा जाता है, इसका विशेष महत्व है। वर्ष 2025 में यह तिथि 20 सितंबर (शनिवार) को पड़ रही है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार, इस तिथि पर केवल उन्हीं मृतकों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु असामान्य परिस्थितियों में हुई हो-
युद्ध अथवा हथियार से मृत्यु
सड़क या अन्य दुर्घटना में मृत्यु
आत्महत्या
हत्या
अर्थात, चतुर्दशी तिथि अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं के श्राद्ध के लिए ही मान्य है।
सामान्य मृत्यु वालों का श्राद्ध क्यों वर्जित है?
शास्त्र बताते हैं कि जो लोग चतुर्दशी तिथि पर सामान्य मृतकों का श्राद्ध करते हैं, उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा था कि इस दिन अनुचित श्राद्ध करने पर-
अयोग्य संतान का जन्म हो सकता है,
जीवन में निरंतर विवाद बने रहते हैं,
दांपत्य जीवन में अलगाव और अशांति आती है।
इसी कारण जिनकी मृत्यु सामान्य रूप से हुई हो, उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन करना ही उचित माना गया है।
अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध क्यों आवश्यक है?
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु अकाल या असामान्य रूप से होती है, तो उसकी आयु अधूरी रह जाती है और आत्मा अतृप्त रहती है। ऐसी आत्माएं शांति न मिलने पर प्रेत, पिशाच या भूत योनि में भटकने लगती हैं। गुरुड़ पुराण में उल्लेख है कि अगर ऐसे पितरों का उचित श्राद्ध नहीं किया जाए तो वे वंशजों के लिए कष्टकारी बन जाते हैं। श्राद्ध और तर्पण द्वारा ही उन्हें मुक्ति का मार्ग मिलता है और परिवार पर आई बाधाएं दूर होती हैं। यही कारण है कि घायल चतुर्दशी पर विशेष रूप से अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करना अनिवार्य माना गया है।
पितृ पक्ष में हर तिथि का अपना अलग महत्व
पितृ पक्ष में हर तिथि का अपना अलग महत्व है। घायल चतुर्दशी पर सामान्य मृत्यु वालों का श्राद्ध वर्जित है, जबकि असामान्य परिस्थितियों में मृत पितरों का तर्पण आवश्यक है। इस परंपरा का पालन न केवल पूर्वजों की आत्मा को शांति देता है, बल्कि वंशजों के जीवन में सुख, समृद्धि और स्थिरता भी लाता है।
