Trump के टैरिफ से मिर्जापुर-भदोही की कालीन पर काला साया, गोदाम से एयरपोर्ट तक डंप कालीन, लाखों कारीगरों की रोज़ी पर मंडराया संकट

भारत के कालीन उद्योग, खासकर मिर्जापुर और भदोही के कारोबारियों पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ का सीधा असर पड़ रहा है। भदोही में बनने वाली करीब 80 प्रतिशत कालीन का निर्यात अमेरिका में होता है लेकिन अब 50 प्रतिशत तक बढ़े टैरिफ के चलते कारोबारियों की हालत बिगड़ने लगी है। गोदाम से लेकर मुंबई एयरपोर्ट तक कालीन का स्टॉक डंप पड़ा है और ऑर्डर अधर में लटक गए हैं।

20 हजार करोड़ का कारोबार, 17 हजार करोड़ सिर्फ अमेरिका से

भारत का कालीन कारोबार सालाना करीब 20 हजार करोड़ रुपए का है। इसमें से 17 हजार करोड़ का निर्यात केवल अमेरिका में होता है। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ मिर्जापुर और भदोही से ही लगभग 11 हजार करोड़ रुपए का कालीन अमेरिका जाता है। इस उद्योग से देशभर में एक करोड़ से ज्यादा अनस्किल्ड मज़दूर जुड़े हैं, जिनमें भदोही-मिर्जापुर के करीब 25 लाख कारीगर शामिल हैं। अगर टैरिफ संकट जल्दी नहीं सुलझा तो लाखों परिवार बेरोजगारी की मार झेल सकते हैं।

कालीन भैया से असली कालीन तक

वेब सीरीज़ मिर्जापुर में “कालीन भैया” का किरदार जितना मशहूर हुआ, उतनी ही असली मिर्जापुर की कालीन दुनिया भर में मशहूर है। यही वजह है कि अमेरिकी टैरिफ का असर सबसे ज्यादा इसी इलाके के कारोबार पर पड़ा है। कालीन कारोबारी मोहम्मद जावेद खान बताते हैं कि नए टैक्स बोझ के चलते उनके गोदाम से लेकर मुंबई एयरपोर्ट तक कालीन का माल फंसा पड़ा है।

45 लाख कारीगरों पर मंडराता बेरोजगारी का खतरा

भदोही-मिर्जापुर ही नहीं, पूरे देश में कालीन उद्योग से 45 लाख से ज्यादा कारीगर जुड़े हैं। इनमें अधिकतर अनस्किल्ड मजदूर हैं, जो बुनाई, रंगाई और फिनिशिंग जैसे कामों पर निर्भर हैं। अगर अमेरिकी बाजार सिकुड़ता है तो इनकी रोज़ी-रोटी पर सीधा संकट आ जाएगा। सीईपीसी (Carpet Export Promotion Council) के पूर्व अध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह का कहना है कि टैरिफ से कारोबार पर 50 से 60 प्रतिशत तक असर पड़ेगा।

पहले युद्ध, अब टैरिफ

हाल के वर्षों में युद्ध और वैश्विक तनाव के कारण भी कालीन निर्यात प्रभावित हुआ था। अब ट्रंप के टैरिफ से स्थिति और बिगड़ गई है। कारोबारी मान रहे हैं कि इस फैसले से उन्हें 8 से 9 हजार करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है।

सरकार से सहारे की उम्मीद

कालीन उद्योग से जुड़े लोग मानते हैं कि सरकार अगर जल्द कदम नहीं उठाती तो यह परंपरागत कला पूरी तरह से ठप हो सकती है। कारोबारी याद दिलाते हैं कि 1990 से पहले सरकार उन्हें 20 प्रतिशत नगद प्रोत्साहन, इनकम टैक्स छूट और बैंक ब्याज पर 3-4 प्रतिशत की राहत देती थी। लेकिन ये सभी सुविधाएं अब खत्म हो चुकी हैं। उद्योग जगत चाहता है कि सरकार फिर से पुराने प्रोत्साहन उपाय शुरू करे ताकि लाखों कारीगरों का भविष्य सुरक्षित रह सके।

धागों में उलझा भविष्य

मिर्जापुर और भदोही की कालीन केवल एक कारोबार नहीं, बल्कि एक परंपरा और पहचान है। अगर अमेरिकी टैरिफ पर जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह कला और इससे जुड़े लाखों कारीगर संकट में पड़ जाएंगे। कारोबारियों का कहना है कि सरकार अगर इस समय मदद नहीं करती, तो कालीन उद्योग की चमक हमेशा के लिए फीकी पड़ सकती है।

Rishabh Chhabra
Author: Rishabh Chhabra