हरतालिका तीज इस साल 26 अगस्त 2025 को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख की कामना से करती हैं। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करती हैं। हरतालिका तीज के पूजन में एक विशेष परंपरा निभाई जाती है, जिसे कहते हैं फुलेरा। इसके बिना यह पूजन अधूरा माना जाता है।
फुलेरा क्या है और क्यों बनता है खास?
हरतालिका तीज के दिन मिट्टी के शिवलिंग और माता पार्वती की प्रतिमा बनाई जाती है और उनकी विधिपूर्वक पूजा होती है। इस दौरान मंडप सजाकर उसमें फुलेरा लगाया जाता है।
फुलेरा में फूलों की पाँच लड़ियां बांधी जाती हैं।
इसे शिव-पार्वती की प्रतिमा के ऊपर टांगा जाता है।
यह पाँच लड़ियां भगवान शिव की पाँच पुत्रियों – जया, विषहरा, शामिलबारी, देव और दोतली का प्रतीक मानी जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फुलेरा प्रकृति की प्रचुरता और देवी पार्वती के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
फुलेरा का महत्व
मान्यता है कि जो स्त्रियां किसी कारणवश व्रत नहीं रख पातीं, अगर वे इस दिन फुलेरा के दर्शन कर लें, तो उन्हें भी शिव-पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
फुलेरा को वैवाहिक सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है।
इसे देखकर स्त्रियों के जीवन में सौभाग्य और खुशहाली आती है।
फुलेरा बनाने की विधि
फुलेरा तैयार करने के लिए विभिन्न प्रकार के फूलों, आम की पत्तियों और अशोक की डालियों का प्रयोग किया जाता है।
इन फूलों को एक साथ जोड़कर पाँच सुंदर लड़ियां बनाई जाती हैं।
फिर इन्हें मंडप में शिव-पार्वती की मूर्ति के ऊपर सजाया जाता है।
पूजा के समय स्त्रियां इस फुलेरा की परिक्रमा करती हैं और मंगलकामना करती हैं।
फुलेरा विसर्जन का नियम
पूजन के बाद फुलेरा को कभी भी कहीं फेंका नहीं जाता। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से दोष लगता है।
पूजा समाप्त होने के बाद फुलेरा में प्रयुक्त फूल और पत्तियां नदी या बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।
इससे पूजा पूर्ण मानी जाती है और व्रती को शिव-पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।
हरतालिका तीज पर फुलेरा की परंपरा केवल एक सजावट नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व रखती है। यह न सिर्फ सौंदर्य और प्रकृति का प्रतीक है, बल्कि शिव-पार्वती के दैवीय मिलन और उनके आशीर्वाद का संकेत भी है। इसीलिए हरतालिका तीज का पूजन फुलेरा के बिना अधूरा माना जाता है।
