साल 2006 में नोएडा के निठारी गांव से जब एक-एक कर बच्चों के कंकाल और अवशेष बरामद हुए थे, तब पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। पुलिस ने मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को इस भयावह कांड का जिम्मेदार ठहराया था। दोनों पर कई मुकदमे चले और फांसी तक की सजा सुनाई गई। लेकिन 2023 में हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी के चलते पंढेर को सभी मामलों से बरी कर दिया और अब सुरेंद्र कोली भी महज एक केस में जेल में है, जिसमें उसे जल्द ही राहत मिल सकती है।
कमजोर जांच बनी न्याय में बाधा
इस केस की जांच में कई बड़ी खामियां सामने आईं। पुलिस कस्टडी में लिए गए इकबालिया बयान, फॉरेंसिक सबूतों की कमी, डीएनए टेस्ट न कराना, शवों की पहचान न हो पाना, और घटनास्थल से हत्या के कोई हथियार न मिलना — ये सब केस को कमजोर करते गए। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष को पुख्ता सबूत पेश करने में नाकामी मिली।
सीबीआई पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि जांच एजेंसियों ने केस के मूल सिद्धांतों की अनदेखी की। कोठी से खून या सीमन के नमूने नहीं मिले, न ही कोई सीधा गवाह सामने आया। आरोपित कोली का बयान भी बिना दस्तखत और वीडियो चिप के कोर्ट में पेश नहीं किया गया।
क्या सुरेंद्र कोली बना बलि का बकरा?
कोर्ट ने सवाल उठाए कि आखिर क्यों सिर्फ कोली को बलि का बकरा बनाया गया? उसकी कानूनी सहायता अधूरी रही और उसे लंबे समय तक रिमांड में रखा गया। वहीं पंढेर को धीरे-धीरे सभी मामलों से मुक्त कर दिया गया।
अंग तस्करी की अनदेखी
एक अहम एंगल जो कभी ठीक से जांचा नहीं गया, वो था अंग तस्करी का। कोर्ट और मंत्रालय ने इस पहलू की जांच की मांग की थी, लेकिन सीबीआई ने डी-5 कोठी के मालिक की भूमिका को नज़रअंदाज़ कर दिया।
आज भी अनसुलझा रहस्य
अब जबकि लगभग सभी आरोपित केस से बरी हो चुके हैं, सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि 16 बच्चों की हत्या किसने की? अगर कोली और पंढेर दोषी नहीं हैं, तो असली कातिल कौन है? क्या वो आज भी आज़ाद घूम रहा है?
निठारी कांड भारतीय जांच तंत्र की गंभीर खामियों को उजागर करता है और यह एक ऐसा मामला बन चुका है, जहां इंसाफ का इंतजार अब भी बाकी है।
