रुमाली रोटी भारतीय व्यंजनों में एक खास मुकाम रखती है. इसका नाम इसकी बनावट से जुड़ा है – यह इतनी पतली और मुलायम होती है कि किसी रूमाल जैसी लगती है. तंदूरी और शाही व्यंजनों के साथ परोसी जाने वाली यह रोटी स्वाद के साथ-साथ पेशकश में भी शाही ठाठ का अहसास देती है.
शाही रसोई से निकली, आम थालियों तक पहुंची
रुमाली रोटी की जड़ें मुगल काल में मिलती हैं. जब मुगल भारत आए, तो उनके साथ ही यह रोटी भी भारत आई. पहले इसे शाही दरबारों में परोसा जाता था. कहते हैं कि शुरुआत में इसका उपयोग भोजन के अतिरिक्त तेल को सोखने या हाथ पोंछने के लिए नैपकिन की तरह किया जाता था. लेकिन इसका स्वाद और बनावट इतनी खास थी कि यह रसोई का हिस्सा बन गई.
‘लंबू रोटी’ से ‘मांडा’ तक, कई नाम एक स्वाद
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रुमाली रोटी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कहीं इसे “लंबू रोटी” कहा जाता है, तो कहीं “मांडा”. चाहे नाम कोई भी हो, इसका स्वाद और विशिष्टता हर जगह एक जैसी है. यह रोटी अपने पतलेपन और तवे पर उड़ती सी बनने की शैली के लिए पहचानी जाती है.
दिल्ली से हैदराबाद तक, हर जगह है इसका जलवा
मुगल साम्राज्य के बाद भी रुमाली रोटी की लोकप्रियता कम नहीं हुई. दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद जैसे शहरों में यह खासतौर पर मुगलई और अवधी व्यंजनों के साथ पसंद की जाती है. आज यह न सिर्फ शादी-ब्याह में बल्कि रेस्तरां और ढाबों में भी बड़ी मांग में है.
रसोई में एक कला है इसे बनाना
रुमाली रोटी को बनाना आसान काम नहीं है. इसके लिए आटा, मैदा, नमक और थोड़ा तेल मिलाकर आटा गूंथा जाता है. फिर इस आटे को ढककर रखा जाता है, जिससे वह मुलायम बने. छोटी लोइयों को पतला बेलकर उलटे तवे या कढ़ाई पर बहुत ही सावधानी से सेकना पड़ता है. यही उसे खास बनाता है – पतला, लचीला और हल्का.
शाही स्वाद की आज भी है पहचान
आज भी रुमाली रोटी को कबाब, बटर चिकन, मटन करी, बिरयानी और शोरबे जैसी डिशेज़ के साथ बड़े चाव से खाया जाता है. यह सिर्फ एक रोटी नहीं, बल्कि भारतीय खानपान की विरासत है, जो इतिहास की रसोई से निकलकर आज भी हमारे खाने की थालियों में शान से मौजूद है.
