भारत में ओवरवर्क कल्चर और श्रम कानूनों की स्थिति, सिक लीव और पब्लिक हॉलीडे पर भी टच में रहती है कंपनी

भारत में हाल ही में काम के घंटों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन के 90 घंटे काम करने के सुझाव ने इस चर्चा को हवा दी है। इससे पहले, इंफोसिस के नारायणमूर्ति ने एक सप्ताह में 70 घंटे काम करने की वकालत की थी। इन बयानों ने भारतीय श्रम कानूनों और कार्य संस्कृति पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

भारत में श्रम कानूनों की स्थिति

भारतीय श्रम कानून, खासकर फैक्ट्री अधिनियम 1948, सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम की अनुमति देता है। एक दिन में किसी कर्मचारी से अधिकतम 9 घंटे ही काम कराया जा सकता है। बावजूद इसके, ग्लोबल जॉब मैचिंग प्लेटफॉर्म इनडीड के एक सर्वे के अनुसार, 88% भारतीय कर्मचारियों को उनके काम के घंटों के बाद भी कंपनियों द्वारा संपर्क किया जाता है। 85% कर्मचारियों का कहना है कि छुट्टियों और सिक लीव के दौरान भी उनसे कंपनी संपर्क में रहती है।

ओवरवर्क कल्चर की सच्चाई

भारत में ओवरवर्क कल्चर एक आम बात हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, 50.5% भारतीय कर्मचारी प्रति सप्ताह 49 घंटे या उससे अधिक काम करते हैं। 2018 में यह आंकड़ा 63.4% था। यह दर्शाता है कि काम के घंटे बढ़ते जा रहे हैं, जबकि श्रम कानूनों का पालन अक्सर नहीं किया जाता है।

युवा शक्ति और उनके अधिकार

भारत में युवाओं की एक बड़ी आबादी है, जो देश की सबसे बड़ी पूंजी है। युवाओं को स्वामी विवेकानंद जैसे प्रेरणास्त्रोत के नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि उनके अधिकारों की रक्षा हो और वे अत्यधिक काम के दबाव में न आएं।

काम के घंटे बढ़ाने के प्रस्तावों ने कर्मचारियों के हितों और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता बढ़ा दी है। भारत में श्रम कानूनों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है ताकि कर्मचारियों का शोषण न हो और वे एक स्वस्थ और संतुलित कार्य जीवन जी सकें।

Rishabh Chhabra
Author: Rishabh Chhabra