तमाम प्रयासों के बाद भी देश में Air पॉल्यूशन की समस्या जस की तस बनी हुई है. इस पर कोई भी कंट्रोल नहीं हो पा रहा है. जिसका सीधा असर हमारे और आपके दिल और फेफड़ों पर पड़ता है. लेकिन इस बीच एक ऐसी स्टडी सामने आ रही है जिसने सबको टेंशन में डाल दिया है. दरअसल स्टडी में दावा है कि देश के 10 शहरों में हर दिन होने वाली मौतों में से 7 प्रतिशत से ज्यादा एयर पॉल्यूशन से हो रही हैं. ये स्टडी लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ ने पब्लिश की है. जिसके मुताबिक, देश के 10 शहरों में हर साल 33,000 लोगों की मौत एयर पॉल्यूशन की वजह से हो रही है. इसके साथ ही कई लोग बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.
दिल्ली में वायु प्रदूषण चरम पर
इन 10 शहरों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, वाराणसी, शिमला शामिल हैं. जहां की हवा लोगों के लिए जहर बन गई है. इनमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति दिल्ली में हैं. रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली में हर साल होने वाली मौतों में से करीब 11.5 प्रतिशत वायु प्रदूषण के चलते हो रही हैं. यानी कि देश की राजधानी दिल्ली में हर साल 12 हजार लोग जहरीली हवा में सांस लेने के कारण मौत की आगोश में समाते जा रहे हैं. राजधानी दिल्ली में PM2.5 का खतरनाक स्तर मौतों की सबसे बड़ी वजह बन गया है. यहां PM2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि से दैनिक मृत्यु दर में 0.31 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। दिल्ली के बाद मुंबई में बह रही जहरीली हवा हर साल 5,091 लोगों को मौत की नींद सुला रही है. इसके बाद कोलकाता में 4,678, चेन्नई में 2,870, अहमदाबाद में 2,495, बेंगलुरु में 2,102, हैदराबाद में 1,597, पुणे में 1,367, वाराणसी में 831 और शिमला में 59 लोगों की मौत हर साल प्रदूषण से हुई है। शिमला में कम प्रदूषण के बावजूद मौतों का आंकड़ा चौंकाने वाला है।
इन 10 शहरों में PM 2.5 की उपस्थिति खतरनाक
विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के अनुसार, 24 घंटे की अवधि में PM2.5 कणों की 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर सांद्रता को सुरक्षित माना जाता है. वहीं भारतीय मानकों में इसे 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सीमा तक बढ़ा रखा है. भारत के इन सभी शहरों में PM2.5 की सांद्रता भारत द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से कहीं ज्यादा हैं. इन शहरों में साल के 99.8 प्रतिशत दिन PM2.5 की उपस्थिति खतरनाक होती है.
10 शहरों की 36 लाख मौतों पर हुआ शोध
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 2008 से 2019 के बीच इन 10 शहरों में सरकारी आंकड़ों से मौतों की डेटा इकट्ठा किया. हर शहर के लिए इस अवधि के दौरान रोजाना मौतों का डेटा उपलब्ध कराया गया. देश के सभी 10 शहरों में 36 लाख से अधिक मौतों की जांच की गई. आपको बता दें कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और नई दिल्ली के क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल सेंटर के शोधकर्ता भी इस अंतरराष्ट्रीय टीम का हिस्सा थे.
क्या होते हैं PM 2.5 और PM 10?
PM का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 और 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. दिखने वाली धूल आपकी नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाती है, लेकिन इसे आप धोकर साफ कर सकते हैं. मगर पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि यह आंखों के लिए अदृश्य होता है. इस अदृश्य दुश्मन के खतरे बड़े होते हैं. यह हमारी बॉडी के नेचुरल फिल्टरेशन प्रोसेस से आराम से बच निकलता है.
किस चीज से बनता है PM2.5?
PM2.5 में सभी प्रकार के दहन शामिल हैं, जिनमें मोटर वाहन, बिजली संयंत्र, आवासीय लकड़ी जलाना, जंगल की आग, कृषि जलाना और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाएं शामिल हैं. PM2.5 वाहन के धुएं और झाड़ियों की आग, जंगल की आग या यार्ड कचरे को जलाने से निकलने वाले जहरीले कार्बनिक यौगिकों या भारी धातुओं से बना हो सकता है।
